Friday, September 17, 2010

Arya Samaj - ख़तना और पेशाब

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के रचयिता ने लिखा है कि अगर ख़तना कराना ईश्वर को इष्ट होता तो वह ईश्वर उस चमड़े को आदि सृष्टि में बनाता ही क्यों ? और जो बनाया है वह रक्षार्थ है जैसा आँख के ऊपर चमड़ा। वह गुप्त स्थान अति कोमल है जो उस पर चमड़ा न हो तो एक चींटी के काटने और थोड़ी चोट लगने से बहुत सा दुःख होवे और लघुशंका के पश्चात् कुछ मूत्रांश कपड़ों में न लगे आदि बातों के लिए ख़तना करना बुरा है। ईसा की गवाही मिथ्या है, इसका सोच-विचार ईसाई कुछ भी नहीं करते। (13-31)

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के लेखक का यह कहना कि अगर ख़तना कराना ईश्वर को पसंद होता तो वह चमड़ा ऊपर लगाता ही क्यों? यह कोई बौद्धिक तर्क नहीं है? सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को नंगा पैदा किया है, इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि मनुष्य कपड़े ना पहने, नंगा ही जिये, नंगा ही मरे, गंदा पैदा होता है, गंदा ही रहे। नाखून और बाल आदि भी न कटवाए। दूसरी बात यह कि सृष्टिकर्ता ने चींटी व चोट आदि से सुरक्षा हेतु झिल्ली की व्यवस्था की है। जिस चमड़ी की व्यवस्था सृष्टिकर्ता ने की है वह चमड़ी या झिल्ली न चींटीं रोधक है और न ही चोट रोधक। वह झिल्ली स्वयं इतनी अधिक कोमल है कि उसे खुद सुरक्षा की आवश्यकता है। तीसरी बात कि लघुशंका के पश्चात् कुछ मूत्रांश कपड़ों पर न लगे इसलिए झिल्ली की व्यवस्था की गई है। झिल्ली में कोई सोखता तो लगा नहीं कि वह मूत्रांश को अपने अंदर सोख लेगा। झिल्ली होने से तो और अधिक मूत्रांश झिल्ली में रूकेगा और कपड़ों को गीला और गंदा करेगा। यह तो एक साधारण सी बात है इसमें किसी शोध की भी आवश्यकता नहीं है। जहाँ तक पेशाब की बात है पेशाब शरीर की गंदगी है, इसे धोया जाए तो नुकसान ही क्या है? मगर लेखक ने पेशाब धोने की बात कहीं नहीं लिखी है, जबकि हिंदू ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। एक उदाहरण देखिए -
एका लिंगे गुदे तिस्रस्तथैकत्र करे दश ।
उभयोः सप्त दातव्याः मृदः शुद्धिमभीप्सता ।।
(मनु0, 5-139)
भावार्थ - शुद्धि के इच्छुक व्यक्ति को मूत्र करने के उपरांत लिंग पर एक बार जल डालना चाहिए । मलत्याग के उपरांत गुदा पर तीन बार मिट्टी मलकर दस बार जल डालना चाहिए और जिस बायें हाथ से गुदा पर मिट्टी मली है व जल से उसे धोया है, उस पर दस बार जल डालते हुए दोनों हाथों पर सात बार मिट्टी मलकर उन्हें जल से अच्छी प्रकार धोना चाहिए ।

यहाँ यह भी विचारणीय है कि लेखक ने अपनी समीक्षा में केवल ईसा मसीह और ईसाइयों का ही उल्लेख किया है जबकि ख़तना तो यहूदी और मुसलमान भी कराते हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों ने शोध कर दावा किया है कि ख़तना कराने वाले लोगों में एच.आई.वी. संक्रमण होने के आसार अन्य लोगों की तुलना में छः गुना कम होते हैं। एक विज्ञान की पत्रिका में यह भी बताया गया है कि पुरुषों की जनेन्द्रिय की पतली चमड़ी पर एच.आई.वी. संक्रमण ज्यादा कारगर तरीके से हमला करता है। ख़तना कराकर अगर चमड़ी को हटा दिया जाए तो संक्रमण का ख़तरा कम हो जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ख़तने के द्वारा एच.आई.वी. संक्रमण से बचाव हो सकता है, क्योंकि लिंग की बाहरी पतली झिल्ली एच.आई.वी. के लिए आसान शिकार है। ख़तना जनेन्द्रिय की झिल्ली के अन्दर जमा होने वाले पसेव (गंदगी) से तो बचाता ही है साथ ही पुरुष के पुरुषत्व को भी बढ़ाता है। इसका मनुष्य के मन-मस्तिष्क पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। ख़तना के एड्स जैसी अन्य ख़तरनाक बीमारियों से बचाव के दूरगामी लाभ भी हो सकते हैं जो अभी मनुष्य की आंखों से ओझल हैं।

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